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हर हिंदी दिवस ,शिक्षक दिवस , पर यह बहस अपने आप जोर पकड़ लेती है की हमारी शिक्षण -व्यवस्था किस भाषा में हो ? अंग्रेजी या हिंदी / बहस का एक लम्बा सिलसिला चल पड़ता है . कई छोटे –बड़े अख़बार लेखक , ब्लॉग लेखक , फेसबूकिया लेखक , शिक्षाविद का चोला पहने छुट –भईया नेता सब कलम घिसने लगते हैं . इस मुद्दे पर / आज 65 साल से बहस इसी मुद्दे पर चल रही है की बच्चो को प्ररंभिक शिक्षा किस भाषा में दी जाय . मातृभाषा में या अंतररास्ट्रीय भाषा में ?? हम भारतीयों को बहस –विचार करने में बड़ी आत्मिक सुख की अनुभूति होती है / चाहे वह संसद भवन हो, फेसबुक हो , चाय –पान के दुकान के बाहर लगी बेंच हो , ट्रेन के डब्बे में बैठे सहयात्री हो , या प्रधानमंत्री जी की भेंट – मुलाकात वार्ता हो या योजना आयोग हो / हर तरफ बहस का लम्बा सिलसिला चल रहा है /
‘’ मजा विचार –विमर्श करने में है ………..नतीजे पर पहुचने में नहीं ’’ – यह गूढ़ ज्ञान हमें आजादी के वक्त ही मिल गया था और समय के साथ हमारी यह समझ और समृद्ध होती चली गई / हमारी इसी फ़ितरत के कारण हम हर मुद्दे को बड़े जोर –शोर के साथ उठाते है और फिर लम्बी बहस के बाद कट मार लेते हैं /
अब देखये न , ‘’दिल्ली कांड’’ कितने जोर –शोर से बहस शुरू हुआ फिर आचानक खत्म ,तभी आचानक उपर वाले को उत्तराखंड पर गुस्सा आ गया फिर क्या था अखबारों ने बहस पर इतने पन्ने काले किये की अखबार पढने के लिए ऑफिस से दो दिन की छुट्टी ले ली , इसी बीच किसी ने फ़िल्मी डायलोग मार दिया की 12 रूपये में आज भी खाना मिलता है फिर एक बहस चल पड़ा और हीरो साहब कट मार लिए , फिर आसाराम ने कारनामा किया और फिर बहस का कारवां चल पड़ा /
अब शिक्षक दिवस नजदीक है तो बहस शिक्षण व्यवस्था पर चल पड़ी है –किसी ने कहा- ‘’शिक्षा अपनी देसी भाषा में होनी चाहिए’’ , तो किसी ने कहा – ‘’बचपन सि ही अंग्रेजी पर ध्यान देने की जरुरत है/’’ बहस चलता रहेगा / बच्चे तो एक पैर ‘’अंग्रेजी रूपी नाव’’ पर तो दूसरी पैर ‘’हिंदी रूपी नाव’’ पर डालकर आगे बढ़ने की कोशिश करते रहते हैं / हम भी उन्हें दोनों नावों पर चढाने की कोशिश करते रहते हैं ……….आगे हम भी बचपन में पढ़े हैं की दो नावों पर पैर रखने से क्या होता है ?
इसलिये भैया ,बहस चलती रहनी चाहिए और हम तो ऐसा पारंगत हो गये हैं की बहस करते –करते लगा की बोर हो गये तो तुरंत बहस का मुद्दा ही बदल देते हैं और हमारी ‘’सुभास चाय स्टाल’’ , ‘’फेसबुककिया समाज सेवी ग्रुप’’ , ‘’संसद भवन’’ , ‘’गाँव से बाहर वालि पुलिया’’ , ‘’पाणडे जी की आँगन में बैठकी’’ , सब जगह आपनी आदत समृद्ध करते रहते हैं क्योंकि जानते हैं की मजा बहस करने में है ……नतीजे पर पहुचने में नहीं /
गंगेश गुंजन , गोड्डा
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