laddu ji
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अब तक मेरे लिए सावन में वो बात न थी ,
क्योकि सावन कभी तेरे साथ बीती न थी ,
अब समझा राधा कृष्ण के संग झुला, झूली क्यों थी ?
क्योकि मेरे संग भी एक राधा झुली थी \……
बदल भी गरजे थे ,बिजली भी चमकी थी /
मन -मयूर भी नाचा था , कोयलिया भी कूकी थी ,
कुछ सपने सच हॊ रहे थे , ईक प्यास बुझ रही थी,
” ५ साल बाद”
आज भी सावन आया …….
बादल भी गरजे। …….
बिजली भी चमकी ……
पर सावन में वो बात न थी
क्योकि ”राधा” मेरे साथ न थी। …।
—गंगेश गुंजन , गोड्डा
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